नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) से नगर निगम को करारा झटका लगा है। पेयजल, सीवर, नाली और सॉलिड वेस्ट प्रबंधन में नाकाम रहे नगर निगम पर एनजीटी ने 25 करोड़ रूपये का जुर्माना लगाया था। निगम ने जुर्माना माफ करने का अनुरोध किया था। गुरूवार को मामले की सुनवाई करते हुए याचिका को खारिज कर दिया। कानून के जानकारों का कहना है कि अब नगर निगम को जुर्माने की राशि जमा करनी होगी, ऐसा न करने पर उस पर तमाम तरीके के प्रतिबंध लगाये जा सके हैं, इससे बचाव के लिए नगर निगम सुप्रीम कोर्ट में इस जुर्माने को स्टे कराने के लिए जा सकता है।
पर्यावरणविद डीके जोशी ने 1992 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, इसमें कहा गया था कि नगर निगम ने पेयजल, सीवर, नाली निर्माण और सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के नाम पर कुछ नहीं किया है, उल्टे 500 करोड़ रूपये का घोटाला हो गया है। 1999 में कोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट की मॉनीटरिंग कमेटी का गठन किया गया, 2016 में जोशी ने एनजीटी में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के निस्तारण में लापरवाही की एक और याचिका दायर की थी, 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला एनजीटी को ट्रांसफर कर दिया था। इन मामलों की सुनवाई करते हुए एनजीटी के चयेरमैन की तीन सदस्यीय बेंच ने 29 जनवरी 2019 को राज्य सरकार को 25 करोड़ रूपये जमा करने के आदेश दिये थे। बीती 24 अप्रैल को नगरायुक्त अरूण प्रकाश ने हलफनामा दाखिल किया, इसमें कहा गया कि सभी कार्यों को निर्धारित समय सीमा में पूर्ण करा लिया जायेगा, उन्होंने जुर्माना माफ करने की अपील भी की थी, इसी मामले में गुरूवार को एनजीटी ने सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया, फैसले में कहा गया है कि राज्य सरकार व अन्य को 30 दिन के अंदर जुर्माना अदा करने के निर्देश दिये गये थे। पुनर्विचार याचिका भी इसी समय सीमा के अंदर दाखिल करनी चाहिए थी, जबकि यह 24 अप्रैल को दायर की गयी, लिहाजा ट्रिब्यूनल के पास इस अवधि को बढ़ाने का कोई कारण नहीं है। एनजीटी ने संक्षिप्त आदेश देते हुए याचिका को खारिज कर दिया है।