नेपाल ( Nepal ) की राजधानी काठमांडू (Kathmandu )में शनिवार को बड़ी संख्या में लोगों ने राजशाही की मांग को लेकर प्रदर्शन किया। देश के कई शहरों में फेडरल डेमोक्रैटिक रिपब्लिकन सिस्टम के खिलाफ प्रदर्शन चल रहे हैं जिसे नेपाल में 2008 में लागू किया गया था। इसे 240 साल से चल रही राजशाही खत्म करने के बाद लागू किया गया था। राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी ने इन विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व तभी से किया है। हालांकि, इस बार हालात अलग हैं। पहले जहां इस आंदोलन के कुछ ही समर्थक होते थे ,अब युवा इसमें बड़ी संख्या में कूद पड़े हैं। नेपाल के पूर्व राजा और हिंदू राजशाही के समर्थन में नारे लग रहे हैं जिनके आज राजनीतिक बयान देने पर नेता आलोचना करने उतर पड़ते हैं।
अब तक नेपाली कांग्रेस और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (Nepali Communist Party) के नेता ऐसे प्रदर्शनों को खारिज करते आए हैं और इनके पीछे साजिश को जिम्मेदार बताते रहे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक राजशाही की मांग में प्रदर्शन बढ़ रहे हैं क्योंकि आम लोग प्रजातांत्रिक व्यवस्था से नाराज हो चुके हैं। लोगों में इस बात को लेकर आक्रोश है कि पार्टियां एक-दूसरे के खिलाफ लड़कर सत्ता हासिल करने और अंदरूनी कलह सुलझाने में ही व्यवस्त रहती हैं। केपी शर्मा ओली की सरकार के खिलाफ लोगों में गुस्सा बढ़ता जा रह है। जवाबदेही की कमी और भ्रष्टाचार से अब लोग त्रस्त आ चुके हैं। लोगों का मानना है कि किसी भी राजा के समय से बदतर हालात इस वक्त सरकार के शासन में हैं।
नेपाल ( Nepal ) में राजशाही की पुनः वापसी की मांग करते हुए शुक्रवार को कई जिलों में लोगों ने प्रदर्शन किया था,साथ ही सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। बुटवल, पोखरा, बीरगंज, बिराटनगर, काठमांडू नारायनघाट समेत अधिकांश जिलों में राजशाही समर्थकों ने प्रदर्शन किया।
पांच दिसम्बर नेपाल ( Nepal ) में सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) की केन्द्रीय सचिवालय की बहुप्रतीक्षित बैठक शनिवार को बिना किसी नतीजे के समाप्त हो गई।प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली की पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष पुष्प कमल दहल ‘‘प्रचंड’’ के साथ आमने-सामने की बैठक दोनों के बीच राजनीतिक खींचतान को समाप्त करने में विफल रही।