राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ( Rashtriya Swayamsevak Sangh) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ( Mohan Bhagwat) ने कहा कि गंगा भारत की संस्कृति की जीवन रेखा है। इसे हर हाल में बचाना होगा। जो प्रयास भगीरथ को इस धरती पर गंगा को लाने के लिए करना पड़ा था, उससे अधिक परिश्रम कार्यकर्ताओं को गंगा एवं उससे जुड़ी नदियों को बचाने के लिए करना होगा। क्योंकि यह काम भारत की अंतरात्मा से जुड़ा हुआ है।
डॉ. भागवत ( Mohan Bhagwat) आरएसएस (RSS ) की सामाजिक गतिविधि गंगा समग्र के माघ मेला के विश्व हिंदू परिषद शिविर प्रयागराज (Prayagraj ) में आयोजित पहले कार्यकर्ता संगम में शनिवार को बोल रहे थे। कहा कि निर्मल-अविरल गंगा अभियान को आगे बढ़ाने के लिए विकास और पर्यावरण दोनों का समान रूप से ध्यान रखना होगा। दोनों में संतुलन बनाने की जरूरत है। गंगा समग्र के आंकड़े कह रहे हैं कि अभी बहुत प्रयास बाकी है। नियमित नित्य कार्य करके लक्ष्य तक पहुंचना, टीम खड़ी करना, अविरल एवं निर्मल गंगा के लिए समाज को सजग करना, हानि-लाभ से ऊपर उठकर प्रबोधन करना पड़ेगा। इस कार्य में अन्य संगठन भी लगे हुए हैं, उनको भी साथ लेकर चलने की जरूरत है। यह काम कठिन जरूर है लेकिन असंभव नहीं है। इसलिए कार्यकर्ता बिना विचलित हुए अपने अभियान में जुटे रहे।
इसके लिए तटवर्ती गांव में तीर्थ पुरोहितों को कर्मकांड का प्रशिक्षण, घाटों की स्वच्छता, वृहद वृक्षारोपण तालाबों में जल संचय कर उनको पुनर्जीवन देने से संभव हो पाएगा । इस कार्य में अन्य संगठन भी लगे हुए हैं उनको भी साथ लेकर चलने की जरूरत है। यह काम कठिन जरूर है लेकिन असंभव नहीं है। डिफरेंस बिटवीन सक्सेस एंड फेलियर इज थ्री फीट कहानी का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि सफलता और असफलता में केवल तीन फीट का अंतर रहता है। निराश ना होने वाले कार्यकर्ता सफलता लेकर ही रहते हैं।
संघ प्रमुख मोहन भागवत ( RSS Chief Mohan Bhagwat) ने कहा कि निर्मल अविरल गंगा के लिए समाज को साथ लेना होगा। समाज सजग हो गया तो आधा काम अपने आप पूरा हो जाएगा। शेष काम जिनसे करवाना है वो भी समाज से आते हैं। समाज जागरूक हो गया तो शेष काम पूरा होने में कठिनाई नहीं होगी। इसके लिए सरकार पर निर्भर नहीं होना चाहिए। स्वयं जनता को इसको अपने हाथों में लेना पड़ेगा। इस काम से हमें क्या मिलेगा या मेरा क्या होगा, इस पर विचार करने की आवश्यकता नहीं है। सभी आयामों की मजबूत टीम बनाकर केंद्र एवं राज्य स्तर पर उनको विधिवत प्रशिक्षित कर इस काम को आगे बढ़ाना होगा। इसके लिए उन्होंने विज्ञान और अध्यात्म दोनों के प्रयोग पर बल दिया।