उत्तर प्रदेश के उन्नाव दुष्कर्म और एक्सीडेंट से जुड़े मामले में बृहस्पतिवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कई अहम आदेश दिए। इस मामले से जुड़े सभी पांचों केस लखनऊ से दिल्ली ट्रांसफर करने के लिए कहा। सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत को निर्देश दिया है कि 45 दिन के भीतर सुनवाई पूरी करे। साथ ही इससे जुड़े सभी मामलों में रोजाना सुनवाई निचली अदालत में करने का आदेश दिया है, ताकि जल्द से जल्द पीड़िता को न्याय मिले।
उत्तर प्रदेश सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने पीड़िता को अंतरिम मुआवजा के रूप में 25 लाख रुपये का मुआवजा देने का भी निर्देश दिया। कोर्ट ने सीआरपीएफ को तत्काल प्रभाव से पीड़ित परिवार के सदस्यों को सुरक्षा मुहैया कराने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि पीड़िता के परिवार के अलावा उन्नाव में रह रहे उनके सभी संबंधियों को सुरक्षा उपलब्ध कराई जाए। रायबरेली की जेल में बंद दुष्कर्म पीड़िता के चाचा महेश सिंह को दिल्ली की जेल में स्थानांतरित किया जाएगा।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआइ को 7 दिनों में हादसे की जांच पूरी करने के लिए कहा। कोर्ट ने कहा कि सीबीआइ चाहे तो इसके लिए सात दिन और ले सकती है। लेकिन इस मामले की जांच के लिए 15 दिन से ज्यादा नहीं लगना चाहिए।
अदालत इस मामले में शुक्रवार को फिर से सुनवाई करेगी, जिस दौरान वह पीड़िता के चाचा महेश सिंह की ओर से दी गई याचिका पर भी सुनवाई करेगी।
शीर्ष अदालत ने कहा कि मामलों की सुनवाई के लिए पीठासीन न्यायाधीश का नाम चैम्बर में परामर्श के बाद तय किया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि वह आरोपियों के प्रतिनिधित्व के बिना एक एक्सपर्ट ऑर्डर पारित कर रही है, ताकि मामले के अजीब तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए मामलों में त्वरित जांच और परीक्षण सुनिश्चित किया जा सके।
अदालत इस मामले में शुक्रवार को फिर से सुनवाई करेगी, जिस दौरान वह पीड़िता के चाचा महेश सिंह की ओर से दी गई याचिका पर भी सुनवाई करेगी।
12 जुलाई को चीफ जस्टिस गोगोई को लिखे गए पत्र में पीड़िता और उसकी मां ने सुरक्षा की गुहार लगाई थी। इसमें लिखा था- उन लोगों पर एक्शन लिया जाए, जो उसे धमकाते हैं। लोग घर आकर केस वापस लेने की धमकी देते हैं। कहते हैं कि अगर ऐसा नहीं किया तो झूठे केस में फंसाकर जिंदगीभर जेल में बंद करवा देंगे। हालांकि, यह चिट्ठी चीफ जस्टिस की जानकारी में नहीं लाई गई। बुधवार को सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री के सेक्रेटरी जनरल से इस बारे में सवाल किए। सेक्रेटरी जनरल ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट में हर महीने औसतन 5 हजार पत्र आते हैं। रजिस्ट्री को जुलाई में 6,900 लेटर मिले हैं। इनमें से 1,100 पत्र याचिकाएं थीं। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के मुताबिक इनकी स्क्रीनिंग की गई थी। इस मामले में रजिस्ट्री को पीड़िता के नाम तक की जानकारी नहीं मिली।