जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिलने के बाद, दोनों ही प्रदेशों में उपराज्यपालों ने शपथ ली। गुरुवार को श्रीनगर में गिरीश चंद्र मुर्मु ने जम्मू-कश्मीर के पहले उपराज्यपाल के रूप में शपथ ग्रहण की। लद्दाख के पहले उपराज्यपाल के तौर पर राधाकृष्ण माथुर ने लेह में शपथ ली। जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट की मुख्य न्यायधीश जस्टिस गीता मित्तल ने दोनों को शपथ दिलाई।
दोनों राज्यों का दर्जा बदलने के साथ ही, जम्मू, श्रीनगर और लेह के रेडियो स्टेशनों के नाम भी बदल गए हैं। आज से ही इन स्टेशनों से रेडियो कश्मीर की जगह ऑल इंडिया रेडियो और आकाशवाणी के नाम से प्रसारण शुरू हो गया है। अब इन्हें नाम ‘ऑल इंडिया रेडियो जम्मू’, ‘ऑल इंडिया रेडियो श्रीनगर’ और ‘ऑल इंडिया रेडियो लद्दाख’ कहा जाएगा।
जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल गिरीश चंद्र मुर्मु 1985 बैच के गुजरात कैडर के आईएएस अधिकारी रहे हैं। उनकी नियुक्ति का आदेश मुख्य सचिव बी.वी.आर. सुब्रमण्यम ने पढ़ा। राजभवन में आयोजित समारोह में जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस ने उन्हें शपथ दिलाई। इस मौके पर करीब 250 राजनेता, अधिकारी-कर्मचारी और नागरिक उपस्थित थे।
लद्दाख के पहले उपराज्यपाल बने राधा कृष्ण माथुर 1977 बैच के त्रिपुरा कैडर के आईएएस अधिकारी रहे हैं। वे नवंबर 2018 में मुख्य सूचना आयुक्त के पद से रिटायर हुए थे। उन्होंने केंद्र में व्यय सचिव के तौर पर भी कामकाज संभाला। उन्हें भी जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश ने ही शपथ दिलाई।
केंद्र सरकार ने 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटा दी थी। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिया था। 31 अक्टूबर को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से राजपत्र में प्रकाशित आदेश के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के अंतर्गत, दोनों ही प्रदेशों के उपराज्यपाल संवैधानिक दायित्वों और शक्तियों के प्रयोग के लिए पूर्णत: अधिकृत होंगे।
भारत में ऐसे कई उदाहरण हैं जब किसी केंद्र शासित प्रदेश को राज्य में बदला गया हो या एक राज्य को दो राज्यों में बांटा गया हो, लेकिन ऐसा पहली बार है कि एक राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बदल दिया गया।
इसके साथ ही देश में राज्यों की संख्या 28 और केंद्र शासित प्रदेशों की संख्या 9 हो जाएगी।
नरेंद्र मोदी सरकार ने आर्टिकल 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को दिए गए विशेष राज्य का दर्जा खत्म करने और राज्य को 2 केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने का फैसला किया था, जिसे संसद ने अपनी मंजूरी दी।