लोकसभा चुनावों में साढ़े तीन हजार करोड़ से ज्यादा का काला धन जब्त किया गया प्रत्याशियों ने चुनाव जीतने के लिए अनाप शनाप करोड़ो रूपया पानी की तरह बहाया लेकिन कुछ प्रत्याशी ऐसे भी हैं जिन्होंने बिना कुछ खर्च किये करोड़ों रूपये खर्च करने वाले प्रत्याशी को पराजित कर चुनाव जीतकर दिखाया है।
ऐसा उदाहरण ओडिशा में बालासोर लोकसभा क्षेत्र से इस बार भाजपा के प्रतापचंद्र सारंगी चुने गये हैं उन्होंने करोड़पति उम्मीदवार बीजद के रविंद्र कुमार जैना को हराया, दावा है कि चुनाव में उन्होंने कुछ भी खर्च नहीं किया। मंगलवार को वे संसद भवन पहुंचे तो उनसे मिलने को हर कोई उत्सुक था।
64 वर्षीय सांरगी आज भी साइकिल ही चलाते हैं। लोग उन्हें ओडिशा का मोदी कहते हैं, वे भाजपा की राष्ट्री कार्यकारिणी के सदस्य हैं, लेकिन उनकी पहचान सामाजिक सरोकार के कार्यों से है, वह अविवाहित हैं, एक छोटे से घर में रहते हैं और सन्सासियों की तरह जीवन व्यतीत करते हैं। बालासोर से सांसद चुने जाने के बाद सोशल मीडिया पर उनका नाम भी प्रमुखता से ट्रेंड कर रहा है ।बालासोर में नीलागिर के गोपीनाथपुर गांव में 4 जनवरी 1955 को जन्मे प्रतापचंद्र सारंगी नीलागिर विधानसभा क्षेत्र से 2004 और 2009 में विधायक चुने जा चुके हैं। 2014 में उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन हार गये, इस बार उन्होंने 2014 में जीते बीजू जनता दल के रविंद्र कुमार जेना को ही 12,956 वोटों से पराजित किया। 2009 में यहां से कांग्रेस के दिग्गज नेता श्रीकांत जेना ने विजय हासिल की थी।
ट्विटर पर उनकी एक पोस्ट किसी यूजर ने 24 मई को शेयर की थी, इसे 3600 से अधिक बार री-ट्वीट किया जा चुका है कई यूजर्स ने हीलिखा कि सारंगी को ओडिशा का मुख्यमंत्री बनना चाहिए, क्योंकि उन्होंने जमीनी स्तर पर समाज सेवा के बहुत काम किये हैं। सारंगी बालासोर और मयूरभंज के आदिवासी बहुल गांवों में गण शिक्षा मंदिर योजना के तहत कई स्कूल संचालित करते हैं, जिन्हें सामर कारा केंद्र नाम दिया गया है।
प्रतापचंद्र सारंगी का बचपन से ही अध्यात्म की ओर झुकाव रहा, वह रामकृष्ण मठ में सन्यासी बनना चाहते थे, इसलिए कई बार पश्चिम बंगाल में हावड़ा स्थित बेलूर मठ में रह चुके हैं। सांरगी ने जब मठ के सन्यासियों से इच्छा जताई तो उन्होंने उनके बारे में जानकारी हासिल की, मठ को पता चला कि सारंगी की मां जीवित हैं और विधवा हैं, तो उन्होंने सारंगी से आग्रह किया कि वह घर लौटकर मां की सेवा करें इस पर सांरगी गांव लौट आये और मां के साथ्ज्ञ समाज की भी सेवा करने लगे, उनकी मां का पिछले साल ही देहांत हुआ।